Book title – Jungle Cottage
Publisher – India Netbooks
Pages – 171
Language – Hindi
Author – Nirmala Singh
Available on – Amazon.in
Link – https://www.amazon.in/Jungle-Cottage-Nirmla-Singh/dp/B0991ZP4HZ/ref=sr_1_6?dchild=1&keywords=jungle+cottage&qid=1629092782&sr=8-6
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Jungle Cottage is the first full length novel by Indian writer, artist and poet – Nirmala Singh – which she has published after the success of her 6 poetry books. Contrary to what the title suggests, the book is not based on a cottage set in the forest. The cottage is merely an allegorical reference to the isolation of emotions.
The book deals with the emotions and emotional upheavals in the life of its main protagonist. The book chronicles how the value systems ingrained in a person since childhood symbolizes the person he/she becomes later on in life.
The novel is written in Hindi but the language is easy to understand even for people who have not read works written in Hindi after their mandatory middle or high school syllabus. The highlight of the book for me were the many similes and metaphors that have been artfully used by the author to convey deep or subtle emotions. They make a reader take pause and reflect on their own life, its struggles and make a reader face their own emotions. Perhaps, that was the author’s intent? Whatever be the reason one thing is certain – this is a book that has a part of the author embedded in it. Long after you down the book after reading it, the characters stay with you. Isn’t that the hallmark of a good book?
An extract from the book
रुआँसी हो रही थी वह I रमन भी बेहद परेशान हो गया था गाड़ी का पहिया क्या पन्चर हुआ, लगा जैसे मस्ती वाली आउटिंग ही डिरेल हो गई I पहाड़ी रास्ते शहतूत के कच्चे फलों जैसे होते हैं, हरे, खुरदुरे, चबाओ तो खट्टे और मधुमक्खियों के दोस्त I
“कितनी बार कहा था तुमसे कि मेन रोड पर ही चलते हैं, पर तुम भी न जाने किन ख्यालों में रहती हो, अब भुगतो”..
“गलती तुम्हारी है, स्टेपनी भी चैक नहीं की, और तो और डिक्की में एयरपम्प भी नहीं है, मेरे पापा तो न, चलने के पहले सब खुद चैक करते हैं I ड्राईवर पर भी भरोसा नहीं करते I मुझे पता ही नहीं था कि तुम इतने केयरलैस हो I”
“मोना”…रमन आहत सा बोला I कुछ तीखा बोलने को कसमसाया, पर स्वयं को सहज कर लिया..ठीक है! सब मेरी गलती I चलो देखते हैं क्या हो सकता है I पर अब अपना बैक-पैक उठाओ और स्वेटर पहनो I ठण्ड खा जाओगी तो और मुसीबत, फिर बहुत लाड़ से, गाड़ी से कैप निकाल कर मोना के सिर पर चढ़ाई और माथा चूम लिया I गाड़ी मुख्यमार्ग के बायीं ओर जाती पक्की डामर की एक सँकरी सड़क पर, कटी हुई चट्टान के किनारे खड़ी थी I उसी कटान से सटकर, छोटे-छोटे मोतियों के झुमकों जैसे फूलों से भरा एक गगनचुम्बी वृक्ष खड़ा था I ज़मीन पर गिर-गिर कर जिसके फूलों ने वर्क सी सफ़ेद चादर बिछा दी थी I उसकी पीली जड़ों ने पसरकर किनारे की कटी हुई पहाड़ी की पथरीली मिट्टी को सघन रेशमी कश्मीरी कढ़ाई जैसे जाल से जकड़ रखा था I