रुआँसी हो रही थी वह I रमन भी बेहद परेशान हो गया था गाड़ी का पहिया क्या पन्चर हुआ, लगा जैसे मस्ती वाली आउटिंग ही डिरेल हो गई I पहाड़ी रास्ते शहतूत के कच्चे फलों जैसे होते हैं, हरे, खुरदुरे, चबाओ तो खट्टे और मधुमक्खियों के दोस्त I
“कितनी बार कहा था तुमसे कि मेन रोड पर ही चलते हैं, पर तुम भी न जाने किन ख्यालों में रहती हो, अब भुगतो”..
“गलती तुम्हारी है, स्टेपनी भी चैक नहीं की, और तो और डिक्की में एयरपम्प भी नहीं है, मेरे पापा तो न, चलने के पहले सब खुद चैक करते हैं I ड्राईवर पर भी भरोसा नहीं करते I मुझे पता ही नहीं था कि तुम इतने केयरलैस हो I”
“मोना”...रमन आहत सा बोला I कुछ तीखा बोलने को कसमसाया, पर स्वयं को सहज कर लिया..ठीक है! सब मेरी गलती I चलो देखते हैं क्या हो सकता है I पर अब अपना बैक-पैक उठाओ और स्वेटर पहनो I ठण्ड खा जाओगी तो और मुसीबत, फिर बहुत लाड़ से, गाड़ी से कैप निकाल कर मोना के सिर पर चढ़ाई और माथा चूम लिया I गाड़ी मुख्यमार्ग के बायीं ओर जाती पक्की डामर की एक सँकरी सड़क पर, कटी हुई चट्टान के किनारे खड़ी थी I उसी कटान से सटकर, छोटे-छोटे मोतियों के झुमकों जैसे फूलों से भरा एक गगनचुम्बी वृक्ष खड़ा था I ज़मीन पर गिर-गिर कर जिसके फूलों ने वर्क सी सफ़ेद चादर बिछा दी थी I उसकी पीली जड़ों ने पसरकर किनारे की कटी हुई पहाड़ी की पथरीली मिट्टी को सघन रेशमी कश्मीरी कढ़ाई जैसे जाल से जकड़ रखा था I
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